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Wednesday, March 5, 2014

आशियाना

शहर में ढूढता  एक  पता
रात गहराती  हुई
डर  कुछ  ऐसा कि  क्या  होगा
जब इस  रात  के अँधेरे में
बताय पते पर नहीं  पहुँच  पाये
कंधे पर लटके थैले को
देख घरों  में बंद कुते  भी भौकने  लगे हैं
जकड़ लेता है मन को  घर न ढूढ़  पाने का खौप
सोचता हूँ मै
कैसा होगा उनका जीवन
जो  अपने ही शहर में
घर से दूर
ढूंढ  रहे होंगे  अपने अपने  पते
रिफूजी  तम्बुओं में
--राज राकेश