शहर में ढूढता एक पता
रात गहराती हुई
डर कुछ ऐसा कि क्या होगा
जब इस रात के अँधेरे में
बताय पते पर नहीं पहुँच पाये
कंधे पर लटके थैले को
देख घरों में बंद कुते भी भौकने लगे हैं
जकड़ लेता है मन को घर न ढूढ़ पाने का खौप
सोचता हूँ मै
कैसा होगा उनका जीवन
जो अपने ही शहर में
घर से दूर
ढूंढ रहे होंगे अपने अपने पते
रिफूजी तम्बुओं में
--राज राकेश
रात गहराती हुई
डर कुछ ऐसा कि क्या होगा
जब इस रात के अँधेरे में
बताय पते पर नहीं पहुँच पाये
कंधे पर लटके थैले को
देख घरों में बंद कुते भी भौकने लगे हैं
जकड़ लेता है मन को घर न ढूढ़ पाने का खौप
सोचता हूँ मै
कैसा होगा उनका जीवन
जो अपने ही शहर में
घर से दूर
ढूंढ रहे होंगे अपने अपने पते
रिफूजी तम्बुओं में
--राज राकेश